भावभीनी वंदना (Bhavbhini Vandana)

भावभीनी वंदना भगवन चरणों में चढ़ाएं ।
शुद्ध ज्योतिर्मय निरामय, रूप अपने आप पाएं ॥

ज्ञान से निज को निहारे, दृष्टि से निज को निखारे ।
आचरण की उर्वरा में, लक्ष्य तरुवर लहलहाएं ॥ १ ॥ 

सत्य में आस्था अचल हो , चित संशय से न छल हो | 
सिद्ध कर आत्मानुशासन, विजय का संगान गाये ॥ २ ॥

बिंदु भी हम सिंधु भी है , भक्त भी भगवान भी है ।
छिन्न कर सब ग्रंथियों को, शुद्ध चेतन को जगाएँ ॥ ३ ॥

धर्म है समता हमारा, कर्म समतामय हमारा । 
साम्य योगी बंद ह्रदय में, श्रोत समता का बहायें ॥ ४ ॥  

भक्तामर स्त्रोत

भक्तामर प्रणत मौलिमणि प्रभाणा ।
मुद्योतकं दलित पाप तमोवितानम् ॥
सम्यक् प्रणम्य जिन पादयुगं युगादा ।
वालंबनं भवजले पततां जनानाम् ॥१॥



यः संस्तुतः सकल- वांड्मय तत्त्व बोधा-
दूदभूतबुद्धिपटुभि: सुरलोक- नाथै: ॥
स्तोत्रैर्जगत्त्रि तयचित्त हरैरूदारै:    
स्तोष्ये किलाहमपि तं प्रथमं जिनेन्द्रम ॥२॥


बुद्ध्या विनाऽपि विबुधार्चित पादपीठ-

स्तोतुं समुद्यत मतिर्विगत-त्रपोऽहम् ॥

बालं विहाय जलसंस्थित मिन्दुबिम्ब-

मन्यः क इच्छति जनः सहसा ग्रहीतुम् ॥३॥       

उत्तमक्षमा

अहंकार का भाव ना रखूँ,
नहीं किसी पर क्रोध करूँ,
देख दूसरों की बढ़ती को,
कभी ना ईष्या भाव रखूँ,
रहे भावना ऐसी मेरी,
सरल सत्य व्यवहार करूँ,
बने जहाँ तक इस जीवन में,
औरों का उपकार करूँ..........
जिस दिन से मैं आपको जानता हूँ,
उस दिन से आज तक मन से,
वचन से,काय से जितनी भी गल्तियाँ हुई हो,
उन गल्तियों के लिये सहृदय से
क्षमाप्रार्थी हूँ और क्षमा माँगता हूँ।
॥ उत्तमक्षमा ॥

पच्चक्खाण

नवकारसी 

उग्गए सूरे नमुक्कारसहियं पच्चक्खामि चउव्विहम्पि आहारं असणं, पाणं, खाइमं, साइमं, अन्नत्थणाभोगेणं, सहसागारेणं, अप्पाणं वोसिरामि ||

मंगल पाठ

चत्तारि मंगलं
अरिहंत्ता मंगलं 
सिद्दा मंगलं
साहू मंगलं
केवलिपण्णत्तो धम्मो मंगलं || 

चत्तारि लोगुत्तमा 
अरिहंत्ता लोगुत्तमा 
सिद्दा लोगुत्तमा 
साहू लोगुत्तमा 
केवलिपण्णत्तो धम्मो  लोगुत्तमा ||

चत्तारि सरणं पव्वज्जामि 
अरिहंत्ता सरणं पव्वज्जामि 
सिद्दा सरणं पव्वज्जामि 
साहू सरणं पव्वज्जामि 
केवलिपण्णत्तो धम्मो  सरणं पव्वज्जामि ||

अरिहंतों का शरणा
सिद्धो का शरणा 
साधुओं का शरणा
केवलिप्ररूपित दया धर्म का शरणा 
चार शरणा, दुर्गति हरणा और शरणा नहीं कोय, जो भवि प्राणी आदरे तो अजर अमर होय ॥ 

दिशा

1. माँ से बढकर कोई महान नही है।
2. पिता से बढकर कोई मार्गदर्शक नही है।
3. गुरु से बढकर कोई ग्यानी नही है।
4.भाई से बढकर कोई भरोसेमंद नही है।
5. बहन से बढकर कोई रिश्ता नही है।
6. पत्नि से बढकर कोई जीवन साथी नही है।
7. पुत्र से बढकर कोई सहारा नही है।
8. पुत्री से बढकर कोई सेवा करने वाला नही है।
9. मित्रता से बढकर कोई प्रेम नही है।
बस एक ही वजह है इन रिश्तो के बिगडने की ''व्यक्तिगत स्वार्थ''।
''व्यक्तिगत स्वार्थ'' से उपर उठकर सम्बन्धो को नयी ''दिशा'' देकर अपने जीवन को उच्च, सरल व धन्य बनाओ।

णमोत्थुणं सूत्र (सिद्धो का)

णमोत्थुणं, अरिहंताणं, भगवंताणं, आइगराणं, तित्थयराणं, सयंसंबुद्धाणं
पुरिसुत्तमाणं, पुरिससीहाणं, पुरिसवर पुण्डरीयाणं, पुरिसवर गंधहत्थीणं
लोगुत्तमाणं, लोगनाहाणं, लोगहियाणं, लोगपईवाणं, लोगपज्जोयगराणं
अभयदयाणं, चक्खुदयाणं, मग्गदयाणं, सरणदयाणं, बोहिदयाणं, धम्मदयाणं, 
धम्मदेसयाणं, धम्मनायगाणं, धम्मसारहीणं, धम्मवर-चाउरंत चक्कवट्टीणं,
दीवोत्ताणं सरणगइपइठ्ठाणं, अप्पडिहयवरनाण-दंसण-धराणं, 
विट्टछउमाणं, जिणाणं, जावयाणं,  तिन्नाणं, तारयाणं, बुद्धाणं, बोहयाणं, 
मुत्ताणं, मोअगाणं सव्वन्नूणं, सव्व-दरिसीणं, सिव-मयल-मरुअ-मणंत-मक्खय-
मव्वाबाह-मपुणरावित्ति सिद्धिगइ-नामधेयं ठाणं संपत्ताणं, नमो जिणाणं, 
जि-भयाणं ||



लोगस्स सूत्र


लोगस्स उज्जोगरे, धम्मतित्थयरे जिणे.
अरिहंते कित्तइस्सं, चउवीसंपि केवली ||
          उसभमजियं च वंदे, संभवमभिणंदणं च सुमइं च.
          पउमप्पहं सुपासं, जिणं च चंदप्पहं वंदे ||
सुविहिं च पुप्फदंतं, सीयंलसिज्जंस-वासुपुज्जं च.
विमलमणंतं च जिणं, धम्मं संतिं च वंदामि ||
          कुंथुं अरं च मल्लिं, वंदे मुणिसुव्वयं नमिजिणं च.
          वंदामि रिट्ठनेमिं, पासं तह वद्धमाणं च ||
एवं मए अभित्थुआ, विहुयरयमला पहीणजरमरणा.
चउवीसंपि जिणवरा, तित्थयरा मे पसीयंतु ||
         कित्तिय वंदिय महिया, जे ए लोगस्स उत्तमा सिद्धा.
         आरुग्ग-बोहिलाभं, समाहिवर - मुत्तमं दिंतु ||
चंदेसु निम्मलयरा, आइच्चेसु अहियं पयासयरा.
सागरवरगंभीरा, सिद्धा सिद्धिं मम दिसंतु ||
॥ खामेमि सव्व जिवा, सव्वे जिवा खमन्तु में ॥ 
॥ मित्ति मे सव्व भूएसू, वेरं मज्झं न केणई ॥  

मंगल पाठ

मंगलं भगवान वीरों, मंगलं गौतम: प्रभु: ।
मंगलं स्थूलिभद्राद्या, जैन धर्मोsस्तु मंगलं ॥
सर्व-मंगल-मांगल्यं , सर्व कल्याण कारणम् ।
प्रधानां सर्व धर्माणां, जैन जयतु शासनम् ॥  





सामायिक

सामायिक लेने का पाठ

करेमि भंते । सामाइयं, सावज्जं जोगं पच्चक्खामि, जावनियमं, (१/२/३ मुहूर्त और उपरांत जब तक न पारु, वहां तक), पज्जुवासामी, दुविहं, तिविहेणं, न करेमि, न कारवेमी, मणसा, वयसा, कायसा, तस्स भंते ! पडिक्कमामि, निंदामि, गरिहामि, अप्पाणं वोसिरामी !

सामायिक पारणे  का पाठ

  एयस्स नवमस्स सामाइयवयस्स पंच अइयारा जाणियव्वा न समायरियव्वा तंजहा ते अालोउं - मणदुप्पणिहाणे वयदुप्पणिहाणे कायदुप्पणिहाणे, सामाइयस्स अणवठ्ठियस्स करणया, जो मे देवसिओ अइयारो कओ तस्स मिच्छामी दुक्कडं ।
  सामाइयं सम्मं काएणं, फासियं, पालियं, सोहियं, तीरियं, किट्टियं, आराहियं, आणाए, अणुपालियं, जं च न भवइ तस्स मिच्छामी दुक्कडं ।
  पडिक्कमामि आहारसन्ना, भयसन्ना, मेहुणसन्ना, परिग्गहसन्ना, एया चउसन्ना, कया तस्स मिच्छामी दुक्कडं ।
  पडिक्कमामि चउव्विहं विकहा, इत्थिकहा / पुरिसकहा, भत्तकहा, देसकहा, रायकहा, एया चउ विकहा कया तस्स मिच्छामी दुक्कडं ।
  अइक्कमे, वइक्कमे, अइयारे, अणायारे, जो मे देवसिओ अइयारो कओ तस्स मिच्छामी दुक्कडं ।
  सामाइए मणसो दस दोसा, वयणस्स दस दोसा, सरीरस्स दुवालस दोसा कया तस्स मिच्छामी दुक्कडं ।


तीन तत्त्व का पाठ

 अरिहंतों मह देवो, जावज्जीवाए सुसाहुणो  गुरुणो ।
जिण पण्णत्तं तत्तं, इअ सम्मतं मए गहियं ||

आज का इन्सान


           नयी सदी से मिल रही, दर्द भरी सौगात!
           बेटा कहता बाप से, तेरी क्या औकात!!
अब तो अपना खून भी, करने लगा कमाल!
बोझ समझ माँ-बाप को, घर से रहा निकाल!!
           पानी आँखों का मरा, मरी शर्म औ लाज!
           कहे बहू अब सास से, घर में मेरा राज!!
भाई भी करता नहीं, भाई पर विश्वास!
बहन पराई हो गयी, साली खासमखास!!
           मंदिर में पूजा करें, घर में करें कलेश!
           बापू तो बोझा लगे, पत्थर लगे गणेश!!
बचे कहाँ अब शेष हैं, दया, धरम, ईमान!
पत्थर के भगवान हैं, पत्थर दिल इंसान!!
           पत्थर के भगवान को, लगते छप्पन भोग!
           मर जाते फुटपाथ पर, भूखे, प्यासे लोग!!
फैला है पाखंड का, अन्धकार सब ओर!
पापी करते जागरण, मचा-मचा कर शोर!!
           पहन मुखौटा धरम का, करते दिन भर पाप! 
           भंडारे करते फिरें, घर में भूखा बाप!!

                                                                                                                    श्री रघुविंद्र यादव (हरियाणा )
                                                                                                                    पुस्तक: नागफनी के फूल (2011)

इरियावहि का पाठ

इरियावहि का पाठ

इच्छाकारेणं संदिस्सह भगवं । इरियावहियं पड़िक्कमामि । इच्छं इच्छामि, पड़िक्कमिउं  इरियावहियाए, विराहणाए, गमणागमणे, पाणक्कमणे, बीयक्कमणे , हरियक्कमणे, ओसा-उत्तिंग-पणग-दग-मट्टी-मक्कडा-संताणा संकमणे जे मे जीवा विराहिया, एगिंदिया, बेइंदिया, तेइंदिया, चउरिंदिया, पंचिंदिया, अभिहया, वत्तिया, लेसिया, संघाइया, संघट्टिया, परियाविया, किलामिया, उद्दविया, ठाणाओ ठाणं संकामिया, जीवियाओ ववरोविया, तस्स मिच्छामी दुक्कडं ॥       


Guru Vandana तिक्खुत्तो का पाठ

तिक्खुत्तो का पाठ

तिक्खुत्तो
अयाहिणं 
पयाहिणं
करेमि
वंदामि 
नमंसामि 
सक्कारेमी 
सम्माणेमी 
कल्याणम 
मंगलम 
देवियं 
चेइयं 
पज्जुवासमि 
मत्थएणं

नवकार मंत्र




मो अरिहंताणं
मो सिद्धाणं
मो आयरियाणं
मो उवज्जायणम्
मो लोहे सव्वसाहूणं
ऐसो पंच णमुक्कारो
सव्व पाव पणासणो
मंगलाणं च सव्वेसिं
पढमं हवई मंगलम ॥