भावभीनी वंदना भगवन चरणों में चढ़ाएं ।
शुद्ध ज्योतिर्मय निरामय, रूप अपने आप पाएं ॥
ज्ञान से निज को निहारे, दृष्टि से निज को निखारे ।
आचरण की उर्वरा में, लक्ष्य तरुवर लहलहाएं ॥ १ ॥
सत्य में आस्था अचल हो , चित संशय से न छल हो |
सिद्ध कर आत्मानुशासन, विजय का संगान गाये ॥ २ ॥
बिंदु भी हम सिंधु भी है , भक्त भी भगवान भी है ।
छिन्न कर सब ग्रंथियों को, शुद्ध चेतन को जगाएँ ॥ ३ ॥
धर्म है समता हमारा, कर्म समतामय हमारा ।
साम्य योगी बंद ह्रदय में, श्रोत समता का बहायें ॥ ४ ॥
शुद्ध ज्योतिर्मय निरामय, रूप अपने आप पाएं ॥
ज्ञान से निज को निहारे, दृष्टि से निज को निखारे ।
आचरण की उर्वरा में, लक्ष्य तरुवर लहलहाएं ॥ १ ॥
सत्य में आस्था अचल हो , चित संशय से न छल हो |
सिद्ध कर आत्मानुशासन, विजय का संगान गाये ॥ २ ॥
बिंदु भी हम सिंधु भी है , भक्त भी भगवान भी है ।
छिन्न कर सब ग्रंथियों को, शुद्ध चेतन को जगाएँ ॥ ३ ॥
धर्म है समता हमारा, कर्म समतामय हमारा ।
साम्य योगी बंद ह्रदय में, श्रोत समता का बहायें ॥ ४ ॥